Home > Author > जैनेन्द्र कुमार [Jainendra Kumar]
1 " कहानी लिखी जाने और पढ़ी जाने से, बची जाने की चीज़ हो जाये तो समझ लीजिये कि वेग आएगा कि अवरोध? कहानी एक ऐसी चीज़ है कि लिखने वाले और पढ़ने वाले के बीच किसी बिचौलिये की आवश्यकता नहीं होती। "
― जैनेन्द्र कुमार [Jainendra Kumar] , दस प्रतिनिधि कहानियाँ [Das Pratinidhi Kahaniyan]
2 " जिसको कहानी लिखना है, उसको विज्ञता से घबराना चाहिए और अज्ञता को कभी छोड़ना नहीं चाहिए। जो ज्ञान सत्य है, टिकने वाला है उसका रूप सत्य का है, मतवादिता का नहीं है। ज्ञान वह है जो जीवन को समर्थ कर सकता है। जानने की इच्छा ही बुद्धिमता का लक्षण है - जो जान गया कि वह जानता है, जान चुका है, वही है जो नहीं जानता है। और जो यह जानता है, वह इच्छुक रहता है। वे लोग जीवन में परास्त हो गए हैं, टूट गए हैं, बिखर गए हैं जिन्होंने जीवन में केवल जाना ही जाना है। "